केंद्र सरकार ने हाल ही में वस्तु एवं सेवा कर (GST) ढांचे में बड़ा सुधार करने का ऐलान किया है. इसके तहत 12% और 28% वाले कई स्लैब को खत्म कर 5%, 18% और कुछ चुनिंदा वस्तुओं के लिए नया 40% टैक्स स्लैब लाने की तैयारी है. सरकार का दावा है कि इससे बाजार में मांग बढ़ेगी और अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी, लेकिन जानकारों का कहना है कि इस कदम से राजस्व पर भारी बोझ पड़ेगा.
हर महीने ₹15,000 करोड़ से ज्यादा का नुकसान
वित्तीय विशेषज्ञों का अनुमान है कि इस सुधार से केंद्र और राज्यों को मिलाकर सालाना ₹1.1 से ₹1.8 लाख करोड़ तक का राजस्व नुकसान हो सकता है. यानी सरकार को हर महीने ₹15,000 करोड़ से ज्यादा का घाटा उठाना पड़ सकता है. अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों ने भी इसे 20 अरब डॉलर (लगभग ₹1.6 लाख करोड़) तक की वार्षिक हानि बताया है.
आर्थिक लाभ की उम्मीद
राजस्व हानि के बावजूद अर्थशास्त्रियों का मानना है कि इस कदम से उपभोक्ताओं की जेब में राहत मिलेगी और खपत (consumption) में तेजी आएगी. IDFC First Bank की रिपोर्ट के अनुसार, अगले 12 महीनों में देश की GDP पर 0.6 प्रतिशत अंक तक की अतिरिक्त वृद्धि संभव है. शेयर बाजार में भी इस घोषणा के बाद सकारात्मक रुख देखने को मिला है.
बिहार चुनाव से जुड़ रहा है मामला
GST सुधारों की घोषणा का समय भी खास मायने रखता है. चूंकि नवंबर में बिहार विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, इसलिए विपक्ष का आरोप है कि सरकार ने जनता को लुभाने के लिए यह कदम उठाया है. दूसरी ओर, बिहार सहित कई राज्य सरकारें इस सुधार को लेकर आशंकित हैं. उनका कहना है कि GST दरों में कटौती से राज्य राजस्व बुरी तरह प्रभावित होगा.
राज्यों की आपत्ति और आगे की राह
केरल समेत कई राज्यों ने इस सुधार पर सवाल उठाए हैं और इसे “राज्य राजस्व के लिए विनाशकारी” बताया है. इस मुद्दे पर जल्द ही मंत्रियों के समूह (GoM) की बैठक होने वाली है, जिसमें बिहार के उप मुख्यमंत्री भी शामिल होंगे. बैठक के बाद ही स्पष्ट होगा कि इन सुधारों को किस तरह लागू किया जाएगा और राज्यों को राजस्व घाटे की भरपाई कैसे होगी.