
वाराणसी: धर्म आध्यात्म और संस्कृति की नगरी काशी ने शुक्रवार को अंतरराष्ट्रीय रिश्तों के नए अध्याय की गवाही दी. मॉरीशस के प्रधानमंत्री डॉ. नवीनचंद्र रामगुलाम और उनकी पत्नी वीना रामगुलाम ने न सिर्फ गंगा-घाट और मंदिरों की आध्यात्मिकता का अनुभव किया, बल्कि काशी की हस्तकला, खानपान और पहनावे की खूबसूरती पर भी मंत्रमुग्ध हो गए .इस दौरान वीना रामगुलाम का झुकाव खासतौर पर बनारसी साड़ियों और हस्तनिर्मित वस्त्रों की ओर रहा.

बनारसी साड़ी और काशी की हस्तकला का आकर्षण
गुरुवार की दोपहर अचानक ही वीना रामगुलाम मकबूल आलम रोड स्थित पनाया बनारसी साड़ी शोरूम पहुँच गईं. उनके आगमन से शोरूम संचालक और कारीगरों में उत्साह की लहर दौड़ गई. शोरूम मालिक वीरेंद्र अग्रवाल ने बताया कि, “वीना जी को बनारसी साड़ियां बेहद पसंद आईं. उन्होंने कई साड़ियां खरीदीं. इसके अलावा पोटली बैग, स्लिंग बैग और कुर्ता-पायजामा भी चुना. उन्होंने कुछ सामान उपहार स्वरूप भी लिया, जिससे साफ है कि काशी की कला को लेकर उनकी गहरी रुचि है.”
बनारसी साड़ी, जिसे जीआई टैग प्राप्त है और जो ‘एक जिला एक उत्पाद (ODOP)’ योजना में भी शामिल है, न सिर्फ काशी की पहचान है बल्कि भारत की शिल्प परंपरा का गौरव भी है.

काशी विश्वनाथ मंदिर में विशेष भेंट
प्रधानमंत्री रामगुलाम और उनकी पत्नी ने शुक्रवार को श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन के बाद उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने गुलाबी मीनाकारी से बनी मंदिर की विशेष प्रतिकृति भेंट की. यह अनुकृति बेहद खास थी क्योंकि इसे विशेष रूप से उनके लिए तैयार किया गया था.
नेशनल अवार्डी कारीगर कुंजबिहारी ने बताया कि, “यह प्रतिकृति पहली बार किसी विशेष विदेशी अतिथि के लिए बनाई गई. इसे तैयार करने में करीब एक महीना लगा. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार हस्तकला को बढ़ावा देने पर जोर देते हैं. इसी प्रेरणा से उन्होंने यह अनुकृति बनाई.” गुलाबी मीनाकारी भी बनारसी परंपरा का अहम हिस्सा है और इसे जीआई टैग और ओडीओपी योजना में शामिल किया गया है.

आध्यात्मिक अनुभव से अभिभूत हुए मेहमान
डॉ. रामगुलाम ने गंगा की आरती में भाग लिया और घाटों की गरिमा का अनुभव किया उन्होंने कहा कि काशी में आकर ऐसा लगता है मानो इतिहास और अध्यात्म की धारा में स्वयं को डुबो दिया हो.
उनकी पत्नी वीना भी गहरी श्रद्धा और उत्साह के साथ हर गतिविधि में शामिल रहीं. स्थानीय खानपान का स्वाद लेने के बाद उन्होंने मुस्कराते हुए कहा कि बनारसी व्यंजन और परिधान उन्हें बेहद भा गए.

मॉरीशस और पूर्वांचल का पुराना रिश्ता
दरअसल, मॉरीशस और पूर्वांचल के बीच का रिश्ता सदियों पुराना है. ग़ुलामी के दौर में बड़ी संख्या में उत्तर प्रदेश और बिहार से लोग मॉरीशस पहुंचे थे और वहीं बस गए. आज भी मॉरीशस में भोजपुरी संस्कृति की झलक साफ देखी जा सकती है.
काशी और मॉरीशस के बीच यही सांस्कृतिक और ऐतिहासिक जुड़ाव इस यात्रा में और प्रगाढ़ होता दिखा. बनारसी साड़ी और गुलाबी मीनाकारी जैसे उत्पाद इस रिश्ते को नई दिशा देने के साथ-साथ वैश्विक स्तर पर भारतीय कला और संस्कृति को प्रतिष्ठा दिला रहे हैं.
कारीगरों और स्थानीय उद्योग के लिए बड़ी उपलब्धि
प्रधानमंत्री और उनकी पत्नी का यह दौरा केवल धार्मिक महत्व तक सीमित नहीं रहा . यह काशी के कारीगरों और स्थानीय उद्योगों के लिए भी बड़ी उपलब्धि साबित हुआ. उनकी खरीदारी और हस्तकला के प्रति रुचि ने कारीगरों में आत्मविश्वास जगाया.
एक स्थानीय कारीगर ने कहा, “जब इतने बड़े मेहमान हमारी मेहनत और कला को सराहते हैं, तो यह हमारे लिए गर्व की बात होती है. इससे हमारे काम को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिलती है.”
काशी के लिए गर्व का क्षण
मॉरीशस प्रधानमंत्री का काशी दौरा शहरवासियों के लिए गर्व और उत्सव जैसा रहा. यह केवल आध्यात्मिक अनुभव का आदान-प्रदान नहीं था, बल्कि एक ऐसा पल था जिसने भारतीय संस्कृति, काशी की परंपरा और हस्तकला को वैश्विक मंच पर और मजबूत पहचान दी.
इस यात्रा ने एक बार फिर साबित किया कि काशी सिर्फ एक शहर नहीं, बल्कि भारत की जीवित संस्कृति और आत्मा है, जो हर आगंतुक को अपने रंग में रंग देती है.





