वाराणसी : भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की आज चतुर्थी को चंद्र दर्शन वर्जित माना जाता है. यह दिन "गणेश चतुर्थी" के रूप में भी प्रसिद्ध है. आज के दिन चंद्र देव का दर्शन कोई नहीं करता है . आइए जानते हैं कि क्यों आज के दिन दर्शन नहीं किया जाता है. गणेश पुराण में वर्णित एक अत्यंत रोचक और प्रेरणादायक प्रसंग है, जो हमें धैर्य, समता, न्याय और संयम का गूढ़ संदेश देता है.
पौराणिक मान्यता
चिरकाल पूर्व की बात है, जब महर्षि नारद भगवान शिव से मिलने कैलाश पर्वत पर पहुँचे. उन्होंने भगवान शिव को एक दिव्य फल भेंट किया और कहा कि यह फल आप उसी को दें जो आपको सर्वाधिक प्रिय हो. यह सुनकर भगवान शिव एक धार्मिक संकट में पड़ गए, क्योंकि उस समय उनके दोनों पुत्र – भगवान कार्तिकेय और भगवान गणेश वहां उपस्थित थे और दोनों ही उस दिव्य फल को पाने की इच्छा रखते थे.
असमंजस में भगवान शिव
भगवान शिव असमंजस में पड़ गए कि किसे वह फल दें. उन्होंने सभी देवताओं को आमंत्रित किया और ब्रह्मा जी से सलाह ली. ब्रह्मा जी ने कहा कि चूंकि कार्तिकेय बड़े हैं, अतः फल उन्हें देना न्यायसंगत होगा.भगवान शिव ने निर्णय स्वीकारते हुए वह फल भगवान कार्तिकेय को प्रदान कर दिया.
यह देखकर भगवान गणेश खिन्न हो गए. उन्होंने निश्चय किया कि उन्हें यह निर्णय स्वीकार नहीं.सभा के समाप्त होते ही वे ब्रह्मा लोक पहुँचे और क्रोधित होकर ब्रह्मा जी के कार्यों में विघ्न डालने लगे. इस दृश्य को देखकर चंद्र देव (चंद्रमा) हँसने लगे, जो कि गणेश जी का उपहास था.
चंद्रदेव को दिया श्राप
भगवान गणेश ने यह अपमान सहन नहीं किया और चंद्र देव को श्राप दे दिया कि आज के बाद तुम किसी के देखने योग्य नहीं रहोगे. जो भी व्यक्ति तुम्हें देखेगा, वह पाप का भागी बनेगा.
इस श्राप के फलस्वरूप चंद्र देव का तेज नष्ट हो गया और वे लज्जित हो उठे. सभी देवता चिंतित हुए और भगवान गणेश की शरण में आए. कठिन तप और भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान गणेश ने कहा.
"मेरा वचन मिथ्या नहीं हो सकता, परंतु मैं यह श्राप एक दिन तक सीमित कर देता हूँ. भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को जो कोई चंद्र दर्शन करेगा, वह दोष का भागी होगा. लेकिन अन्य चतुर्थियों पर चंद्र दर्शन आवश्यक रहेगा.
शिक्षा:
कभी भी अहंकार या उपहास न करें, विशेषकर किसी देवता या ज्ञानी व्यक्ति का.
न्याय में केवल बड़े-छोटे का विचार ही नहीं, बल्कि समर्पण, विवेक और निष्ठा का मूल्यांकन भी आवश्यक है.
हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है – चाहे वह हँसी का मज़ाक हो या अन्याय का विरोध.
भगवान गणेश केवल बुद्धि के देवता ही नहीं, बल्कि न्यायप्रिय और दृढ़प्रतिज्ञ भी हैं.